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भारी भोजन की पहचान

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भारी भोजन को आयुर्वेद में गुरु भोजन कहा जाता है । भारी या गुरु भोजन का मतलब उस भोजन से है जो भोजन देर से पचता है। भारी भोजन मुख्य रूप से तीन प्रकार का होता है : मात्रा गुरु, स्वभावतः गुरु, संस्कार गुरु ।  1. मात्रा गुरु का अर्थ है की किसी भोजन को अधिक मात्रा में खाने के बाद, वो भोजन पचने में भारी लगे। इ सका श्रेष्ठ उदाहरण है मूंग दाल। अगर आप मूंग दाल को कम मात्रा में ग्रहण करते हैं तो यह आपके लिए पचने में हल्की होगी और यदि आप इसी मूंग दाल को ज्यादा मात्रा में खाएंगे तो यह आपको पचने में भारी होगी। इसी प्रकार के भोजन को मात्रा गुरु भोजन कहते हैं।    2. स्वभावतः गुरु का मतलब है की जिस भोजन की प्रकृति ही गुरु हो, यानी की वह भोजन देर से ही पचेगा चाहे कुछ भी कर लें। इसका बेहतरीन उदाहरण है उड़द की दाल। उड़द की दाल को चाहे आप कम खाएं या ज्यादा यह निश्चित ही देर से पचेगी। तो इस प्रकार के सभी भोजन जो देर से पचते हैं उन्हें स्वभावतः गुरु भोजन कहते हैं।  3. संस्कार गुरु का सबसे बेहतरीन उदाहरण है: हलवा, तेल या घी में तले हुए मूंग, चने, काजू, मूंगफली, बनाना शेक, आदि। यानी की जो...