पित्त दोष क्या है?, इसके असंतुलित होने के कारण लक्षण और उपाय
पित्त दोष मुख्यतः आपके शरीर में उष्णता को बढ़ाता या नियंत्रित करता है। अगर महाभूतों की बात करें तो उनमें अग्नि महाभूत के समान ही इसके कार्य हैं, लेकिन बिल्कुल एक जैसे नहीं हैं।
पित्त दोष क्या है
जब यह सम अवस्था में रहता है तो यह निम्न प्रकार से आपके शरीर में कार्य करता है।
- यह आपके शरीर में सभी सभी पाचक रसों को नियंत्रित करता है।
- यह आपके शरीर में सभी प्रकार की अग्नियों का नेतृत्व करता है।
- आपके भोजन को पचाने का कार्य भी यही करता है।
- आपके शरीर के तापमान को उसकी मूल अवस्था में बनाये रखता है।
- इंसान की भूख - प्यास को भी पित्त ही नियंत्रित करता है।
- आपकी भोजन में रूचि को बढ़ाता है।
- यह आपकी बुद्धि को तेज करता है।
- यह आपकी सम्पूर्ण शरीर की खूबसूरती को बढ़ता है।
- यह आपकी आँखों को रौशनी को बरक़रार रखता है।
- शरीर में मौजूद अतिरिक्त स्निग्धता को सोखता है।
- आपके खाये हुए भोजन को रस, रक्त, धातु, मांस, शुक्र एवं मज्जा के रूप में परिवर्तित करता है।
शरीर में पित्त दोष का स्थान
इंसान के शरीर में पित्त मुख्य्तः हृदय एवं नाभि के बीच में रहता है। अगर अलग - अलग अंगों की बात करें तो यह आपके अमाशय, रक्त, रस, पसीना, नेत्र एवं त्वचा में विद्यमान रहता है।
मानव शरीर की उम्र के हिसाब से पित्त दोष
यह आपकी युवावस्था में सबसे ज्यादा सक्रिय रहता है जिसकी वजह से आपको शरीर एवं चेहरे पर फुंसियां निकलती हैं। इसमें अनुमानित आयु लगभग 16 - 17 की उम्र से लेकर 23 - 24 की उम्र तक हो सकती है।
पित्त के भेद
पित्त के पांच भेद हैं। जो की मानव शरीर में अलग - अलग कार्य में संलग्न रहते हैं। इनके नाम हैं पाचक, रंजक, साधक, आलोचक एवं भ्राजक।
शरीर में पित्त दोष की वृद्धि होने के लक्षण
आपने कई बार आयुर्वेदिक वैद्यों से सुना होगा की आपकी पित्त प्रकृति है या पित्त दोष बढ़ गया है, तो अब हम बातएंगे की जिस व्यक्ति की पित्त प्रकृति हो या पित्त में वृद्धि हो गई हो तो उसके क्या लक्षण होते हैं।
- पित्त की वृद्धि होंने पर त्वचा एवं नाखूनों का रंग पीला पड़ने लगेगा।
- मल एवं मूत्र का रंग भी पीला होने लगता है।
- आँखों में भी पीलापन झलकने लगता है।
- बल एवं ताकत की कमी महसूस होती है।
- शरीर से अधिक पसीना बहने लगता है।
- शरीर का तापमान बढ़ने लगता है।
- ज्यादा ठंडी चीजें खाने की इच्छा होना भी पित्त वृद्धि का लक्षण है।
- पसीने से बहुत ज्यादा दुर्गन्ध आना।
- शरीर में थोड़ी सी चिपचिपाहट महसूस होना।
- मुख एवं शरीर से कच्चे मांस जैसी दुर्गन्ध आना।
- शुक्राणुओं की कमी होना और सम्भोग की इच्छा ना होना।
- बार - बार खाना और प्यास लगना।
- गर्मी शहन न कर पाना।
- चेहरा बाकि शरीर के मुकाबले गर्म होना।
- चेहरे एवं शरीर पर फुंसियां निकलना।
- बालों का समय से पहले सफ़ेद होना, झड़ना और गंजापान भी लक्षण है।
- समय से पहले झुर्रियां आना, झाइयां पड़ना, काले तिल होना, मस्से होना आदि।
पित्तदोष के असंतुलित होने के कारण
सबसे पहले तो आप जान लें की सर्दियों में एवं युवावस्था में पित्त की बहुलता होती है, तो इस समय यह बिना किसी कारण के असंतुलित हो सकता है। साथ ही आनुवंशिक रूप से मिली पित्त प्रकृति भी बहुत ही कम कारणों से असंतुलित हो सकती है। अब जानते हैं बाकी के कारण।
- ज्यादा क्रोघ करने से इसमें वृद्धि होती है।
- खट्टे, जलन पैदा करने वाले, ज्यादा तीखे, गर्म और नमकीन पदार्थो का सेवन करने से।
- ज्यादा शराब आदि का नशा करने से।
- अधिक देर तक धुप में रहने से।
- अत्यधिक श्रम करने से।
- चिंता एवं तनाव पूर्ण जीवन जीने से।
- ज्यादा अग्नि के संपर्क में आने से।
- अनियमित रूप से भोजन करना।
- अत्यधिक सम्भोग करने से।
- अत्यधिक भयभीत होने से।
पित्त दोष की कमी होने के लक्षण
आप सोचते होंगे की पित्त की वृद्धि होती है तभी रोग उत्पन्न होते होंगे, लेकिन ऐसा नहीं है इसकी कमी से भी शरीर में बहुत सारे विकार उत्पन होते हैं। चलिए इनके बारे में जानते हैं।
- सबसे पहले तो आपके शरीर की अग्नियों पर असर पड़ेगा, यानी की जठराग्नि, पाचन अग्नि, आदि सब मंद पड़ जाएंगी।
- भोजन पचने में परेशानी होना।
- शरीर के तापमान में गिरावट महसूस होगी।
- चेहरे की चमक कम हो जाएगी।
- ठण्ड महसूस होना।
- शरीर की रस, रक्त, धातु आदि में क्षीणता होना आदि।
पित्त दोष को समावस्था में लाने के उपाय
सबसे पहले तो उन सभी कारणों को रोक दें, जिनके कारण आपके शरीर में पित्त की वृद्धि या कमी हुई है, और ठीक इनका उल्टा कार्य कीजिये इससे आपको बहुत फायदा मिलेगा। अब कुछ और चीजे जानते हैं जिससे पित्त दोष समावस्था में आ जाए।
- घी का सेवन करने से यह शान्त होता है।
- अंकुरित अनाज खाएं, जैसे अंकुरित चना, मुंग आदि।
- एलोवेरा के जूस का सेवन करें।
- पेट को साफ़ करने वाली जड़ी बूटियों का सेवन करें।
- सही समय पर भोजन करना।
- ठंडे एवं स्वच्छ जल से स्नान करना।
- आपका पसंदीदा संगीत सुनें।
- प्राकृतिक जगहों पर घूमने जाना।
- चन्दन का लेप लगाना।
- ठंडी प्रकृति वाले रसों का सेवन करना आदि।
निष्कर्ष : इस लेख में आपने आपकी पित्त प्रकृति को पहचाना और बढ़े हुए पित्त दोष को शांत करने के उपाय जाने, इन सब उपायों को आप अपने जीवन में अपनाकर बहुत सारी बीमारियों से बच सकते हैं, और एक खुशहाल जीवन व्यतीत कर सकते हैं। आयुर्वेद में सभी बिमारियों का कारण इन दोषों का बिगड़ना ही है। खुद समझें और दूसरों को भी समझाएं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें