वात दोष : असंतुलित वात के कारण, लक्षण और उपचार

तीनो दोषों में से, सबसे ज्यादा बीमारियां वात दोष के बिगड़ने या असंतुलित होने से ही होती हैं। आयुर्वेद में तो यहाँ तक कहा गया है की इंसान के शरीर में जितने भी रोग उत्पन्न होते हैं, उन सबका मूल कारण वात दोष का असंतुलित होना ही है। तो चलिए अब इसके बारे में गहनता से जानते हैं। 


बहती हुई हवा का चित्र


वात दोष क्या है?

वात दोष बाकी दोनों दोषों से महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह आपके, लगभग सम्पूर्ण शरीर को ही नियंत्रित करता है। जैसे आपके शरीर की कर्मेन्द्रियां एवं ज्ञानेंद्रियां, रस, रक्त, धातु आदि को उनके मूल काम में संलग्न रखना। 

यह आपके शरीर में सभी गतियों को भी नियंत्रित करता है। जैसे की मल, मूत्र की गति या हृदय की धड़कन, पलक झपकना, छींक आना, डकार आना, पाद आना, सांस लेना या छोड़ना, आपकी चाल की गति, बोलने की गति और शुक्र वेग आदि। यानी आपके शरीर में जो भी अंदरूनी या बाह्य गति होती है, उन सभी को वात ही नियंत्रित करता है। इसके आलावा आपके शरीर के नाड़ी तंत्र को भी यही नियंत्रित करता है। 

जैसा की आप जानते हैं की आयुर्वेद में तीन दोष हैं और हम बात कर रहे हैं वात दोष की। तो आपको लगता होगा की बाकी के बचे हुए दोंनो दोष (पित्त एवं कफ ) भी इसी प्रकार शक्तिशाली होंगे और इससे बिलकुल अलग होंगे। लेकिन मैं आपको बता दूं, मेरे प्यारे मित्रों की दोनों दोषों में भी वात दोष विद्यमान रहता है। और कई बार वात दोष ही इन दोनों दोषों को नियंत्रित करता है। 

वात दोष के पांच भेद हैं : प्राण, उदान, समान,अपान एवं व्यान। इन पाँचों के इंसान के शरीर में अलग - अलग आश्रय स्थान एवं कार्य हैं, साथ ही इनके विकृत होने पर शरीर में अलग - अलग प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं।

मानव शरीर में वात दोष का स्थान 

मानव शरीर में वैसे तो यह हर जगह यह विद्यमान रहता है, लेकिन फिर भी मानव शरीर में इसके हमेशा विद्यमान रहने का स्थान बताया गया है, जो की है, हृदय एवं नाभि से नीचे सम्पूर्ण शरीर में। यह मुख्य रूप से मानव में पक्वाशय एवं गुदाशय में विद्यमान रहता है। 

इंसान की उम्र के हिसाब से शरीर में वात दोष की उपस्थिति

वैसे तो यह हर अवस्था में मौजूद रहता है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा बहुलता वृधावस्था में होती है। 

इसी वजह से तो बेचारे बुजुर्गों को अधिक बीमारियां होती हैं। आप लोगों ने अपनी दादी - दादा को भी देखा होगा की वह लोग जोड़ों के दर्द की शिकायत ज्यादा करते हैं, तो ये सब वात दोष के असंतुलित होने की मेहरबानी है।   

असंतुलित या बिगड़े हुए वात दोष के लक्षण 

अब बात करें इसके लक्षणों की तो सबसे पहले ये जान लें की आयुर्वेद में इसके कुछ गुणों का जिक्र किया गया है जो की हैं रुक्ष, शीतल, लघु, चल, विशद एवं खर आदि और ये गुण ही एक प्रकार से इसके लक्षण भी हैं। क्योंकि ये गुण हमें तभी महसूस होते हैं जब वात दोष असंतुलित होता है, अन्यथा जब तक वात अपनी सम अवस्था में रहता है तो हमे इनमें से किसी भी गुण का अहसास नहीं होता। अगर आपके शरीर में ये गुण या नीचे बताए गए लक्षण बार - बार दिखाई दें तो समझ लेना की आपकी वात प्रकृति है।

तो चलिए अब देखते हैं इसके असंतुलित होने के लक्षण।

  1. त्वचा का रुखा या खुरदरा होना। 
  2. किसी - किसी जगह पर त्वचा का सुन्न पड़ जाना। 
  3. त्वचा का अत्यधिक फट जाना और फिर उसमें सुई चुभने जैसा दर्द महसूस होना।  
  4. शरीर का दुबलापन। 
  5. ज्यादा कद ना बढ़ना, यानी की बौनापन। 
  6. नींद ना आना। 
  7. अत्यधिक बोलना। 
  8. शरीर को हल्का हल्का महसूस करना। 
  9. शरीर में नसों का ज्यादा उभर जाना। 
  10. चलने एवं उठने - बैठने में परेशानी महसूस करना। 
  11. ज्यादा गुस्सा आना। 
  12. चिड़चिड़ा स्वभाव होना। 
  13. बालों का खुरदरा होना। 
  14. याददास्त पर असर पड़ना, यानी के चीजों को जल्दी भूल जाना। 
  15. ठंडी चीजों को सहन न कर पाना। 
  16. हड्डियों में कट्ट - कट्ट की आवाज आना। 
  17. जल्दी घबरा जाना। 
  18. अंगों का टेढ़ा - मेढ़ा होना। 
  19. जोड़ों में दर्द होना। 
  20. पलकों का अनिश्चित ढंग से बार - बार झपकना। 
  21. शरीर में कम्पन्न होना। 
  22. कब्ज या फिर अनियमित समय पर पेट साफ होना। 
  23. मुँह का स्वाद कड़वा या फीका महसूस होना। 
  24. अचानक से शरीर का सुन्न पड़ जाना, जैसे की पक्षाघात। 

ध्यान दें : जरूरी नहीं की वात दोष के असंतुलित होने पर ये सारे लक्षण दिखाई दें, अगर इनमें से कुछेक लक्षण भी दिखाई दें तो समझ लेना की वात असंतुलित हो चुका है। सुश्रुत संहिता में कहा गया है की अगर वात के सभी भेद असंतुलित हो जाए तो इंसान का जीवित रहना बड़ा ही मुश्किल हो जाता है।    

वात के असंतुलित होने के कारण  

सबसे पहले तो आपका यह जानना जरूरी है की वर्षा ऋतु एवं वृद्धावस्था में वात अपने आप भी विकृत हो जाता है क्योंकि इस समय वात की बहुलता होती है। और अब हम जानेंगे की यह और किन कारणों से असंतुलित होता है :

  1. बहुत अधिक तनाव एवं चिंता में रहने से। 
  2. ज्यादा बासी भोजन का सेवन करने से। 
  3. ज्यादा जंक फ़ूड करने से। 
  4. यात्रा करते वक्त ज्यादा झटके लगने से। 
  5. ज्यादा पंखे या एयर कंडीशनर की हवा में रहना। 
  6. अनियमित रूप से भोजन करने से। 
  7. मल, मूत्र, डकार, छींक और उबासी आदि, के वेग को रोकना। 
  8. रात को अधिक देर तक जागते रहने से। 
  9. सारा दिन अब - डब तरिके से खाते रहना। 
  10. ज्यादा सम्भोग करने से। 
  11. जरूरत से ज्यादा व्यायाम करना या अन्य शारीरक श्रम करना। 
  12. बिलकुल शरीरिक श्रम न करना। 
  13. चिल्ला चिल्लाकर बातें करने से। 
  14. ज्यादा कड़वे, कसैले एवम् चरपरे रस वाले खाद्य और पेय पदार्थों का सेवन करने से वात दोष असंतुलित होता है।

ध्यान दें : कई बार वात की बहुलता आपको आपके माता पिता से उपहार में मिल जाती है, यानी के आनुवंशिक रूप से। इससे आपका वात बहुत कम कारणों से ही बिगड़ जाता है। 

असंतुलित हुए वात का उपचार 

हमने अभी - अभी जाना की वात प्रकुपित होने के क्या - क्या कारण हैं। तो सीधी सी बात है की जिन कारणों से वात की वृद्धि होती है उन सब कारणों को बंद करके, ठीक उनकी विपरीत चीजे करें, ऐसा करने से आपका वात सम अवस्था में आ जाएगा। तो चलिए अब जानते हैं की असंतुलित वात को संतुलित करने के लिए आपको क्या - क्या करना चाहिए।

  1. वात दोष को शांत करने के लिए तेल मालिश करना बहुत उत्तम है। 
  2. नाभि एवं पैरों के तलवों में तेल लगाने से भी वात दोष शांत हो जाता है। 
  3. वात दोष को समावस्था में रखने के लिए प्राणायाम अवश्य करें, जैसे : भस्त्रिका, अनुलोम - विलोम एवं कपालभाति आदि। 
  4. हलके गर्म जल से स्नान करने से भी वात दोष शांत होता है। 
  5. कुछ गर्म तासीर वाले भोज्य पदार्थों का सेवन करें। जैसे मेथी, चौलाई, बथुआ, तिल, गुड़, लहसुन, अदरक, हल्दी आदि। 
  6. घी, मखन्न, दही एवं छाछ, आदि स्निग्ध, भोज्य पदार्थों का सेवन अवश्य करें। 
  7. गाय के घी को नाक में डालने से भी वात का शमन होता है। 
  8. कुछ समय तक ब्रह्मचर्य का पालन अवश्य करें।  
  9. सूखे मेवों को पानी में भिगोकर खाएं।
  10. व्यायाम अवश्य करें।
  11. जीवन में अच्छी आदतों को अपनाएँ जैसे: समय पर खाना, समय पर सोना एवं जागना और शरीर के वेगों को कभी मत रोकना आदि। 
  12. एक स्वस्थ दिनचर्या का पालन करें।
  13. वात दोष को शांत करने के लिए मधुर, अम्लीय एवम् लवणीय रस युक्त पेय तथा खाद्य पदार्थों का सेवन करें।

निष्कर्ष : अगर आपको सम्पूर्ण जीवन रोगमुक्त जीना है तो आपको वात को समावस्था में रखना ही पड़ेगा। क्योंकि जैसा की हमने शुरू में ही जिक्र किया था की, सभी बीमारियों का मूल कारण वात को ही माना जाता है। इसी वजह से आयुर्वेद में इसे तीनो दोषों का सम्राट कहा गया है।

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