आयुर्वेद के आठ अंग

आयुर्वेद को आठ भागों में इसलिए बांटा गया, ताकि मनुष्यों को आयुर्वेद समझने में आसानी हो सके। आयुर्वेद का हर एक अंग अलग - अलग प्रकार के रोगों के उपचार की विशेषता लिए हुए है। आयुर्वेद के आठ अंग इस प्रकार हैं : कायचिकित्सा, बालरोग चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, शालाक्य चिकित्सा, भूतविद्या, अगदतंत्र, रसायन तंत्र और वाजीकरण। 


इस तस्वीर में बहुत सारी आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां हैं।

प्राचीन काल में इन सभी अंगों पर अलग - अलग तंत्र या संहिताएं लिखी गई थी। लेकिन आज उनमें से हमारे पास कुछ ही तंत्र मौजूद हैं। आयुर्वेद के इन आठ अंगों में दुनिया में व्याप्त ज्यादातर बीमारियों की चिकित्सा संभव है। आयुर्वेद में बताई गई जड़ी - बूटियों में कुछ और संशोधन करके हर बीमारी का इलाज़ ढूंढा जा सकता है। अब हम विस्तार से इन आठों अंगों के बारे में चर्चा करेंगे।

कायचिकित्सा

अगर देखा जाए तो सभी अंगों में सबसे महत्वपूर्ण अंग कायचिकित्सा ही है क्योंकि इसमें मानव शरीर में होने वाली ज्यादातर बिमारियों की चिकित्सा का वर्णन किया गया है। उदाहरण के लिए कुछ बीमारियां इस प्रकार हैं : बुखार, जुकाम, खाँसी, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह, उल्टी - दस्त, जोड़ों का दर्द, पेट दर्द, त्वचा रोग, गठिया रोग, कुष्ठ रोग, आदि, इस प्रकार के सभी रोगों के उपचार की जानकारी इसी अंग में मिलती है।

बालरोग चिकित्सा   

आयुर्वेद का यह अंग मुख्य रूप नवजात शिशुओं की देखभाल एवं उनमें पनपने वाले विभिन्न रोगों की चिकित्सा के बारे में है। इस अंग में बच्चों की सम्पूर्ण देखरेख के नियम बतलाये गए हैं। इसमें बालकों के साथ - साथ माँ (जननी) के स्वास्थ्य के लिए भी नियम बताये गए हैं। इसमें बताया गया है की बच्चों को स्वस्थ रखने हेतु माँ का दूध कितना हितकर है और साथ ही बालकों के लिए क्या खाना ठीक है और क्या नहीं, आदि ये सब जानकारी इसी अंग में बताई गई है। तो इस प्रकार आयुर्वेद का यह अंग मुख्य रूप से बालकों को स्वस्थ बनाये रखने एवं उनके रोगों का निदान करने के बारे में है। 

शल्य चिकित्सा 

शल्य चिकित्सा आयुर्वेद का महत्वपूर्ण अंग है। इसमें इंसान की के शरीर पर लगी चोटों की चिकित्सा की जाती है। उदाहरण के लिए : बन्दुक की गोली, चाकू के वार से हुआ घाव, किसी कटे हुए अंग को दोबारा से जोड़ना, आग से जला हुआ घाव, रोड पर हुए एक्सीडेंट के घाव, हड्डीयों को जोड़ना, आदि। इस प्रकार की चिकित्सा करने के लिए बहुत सारे औजार प्रयोग में लाये जाते हैं तथा उन सभी औजारों की जानकारी भी इसी अंग में मिलती है। महर्षि सुश्रुत इस प्रकार की चिकित्सा में बिलकुल निपुण थे। 

शालाक्य चिकित्सा 

आयुर्वेद के इस भाग में शरीर के गर्दन से ऊपर के भागों की चिकित्सा की जाती है। इसमें मस्तिष्क, आँख, नाक, कान, मुँह ,गला आदि अंगों की चिकित्सा की जाती है। उदाहरण के लिए : कान में दर्द होना, कान से पानी बहना, नजला, मोतियाबिंद, दृष्टि दोष, ब्रेन ट्यूमर, दिमागी स्वास्थ्य, थाइराइड, आदि सभी प्रकर की बिमारियों के उपाय आयुर्वेद के इसी भाग में बताए गए हैं। 

भूतविद्या

भूतविद्या में पितृ, भूत, पिशाच, ग्रह दोष, आदि से प्रभावित व्यक्तियों की चिकित्सा करने के लिए बलि देना, घर में पूजा पाठ करवाना, आदि सब चीजों का वर्णन होता है। आज के समय में इसे साइकलॉजी विज्ञान कहना उचित रहेगा। जिसमें की दिमागी स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाता है। 

अगद तंत्र 

आयुर्वेद के इस अंग में सभी प्रकर के जहर की जानकारी एवं उनकी चिकित्सा के नियम बताए गए हैं। जहर के कुछ उदाहरण : मकड़ी, सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़े, जहरीले पौधे, मानव द्वारा निर्मित कृत्रिम जहर आदि। 

रसायन तंत्र

आयुर्वेद का यह अंग मनुष्यों को सदैव जवान रहने के नियम बतलाता है। इसमें बहुत सारी ऐसी जड़ी - बूटियों का वर्णन किया गया है जिनका प्रयोग करते रहने से इंसान ना तो आसानी से बीमार पड़ता है और ना ही जल्दी बूढ़ा होता है। यह अंग मुख्य रूप से उनके लिए बेहद जरूरी है जो जीवन में कभी बीमार, कमजोर और बूढ़ा नहीं होना चाहते। अगर संक्षेप में कहें तो इस अंग में आपका बल, बुद्धि, आयु एवम् रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के नियम बताए गए हैं।

वाजीकरण

यह अंग आपकी जनन शक्ति को बढ़ाता है। आज की इस भाग - दौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य का खान - पान एवम् जीवनशैली बिलकुल अव्यवस्थित हो चुकी है जिसका असर आपके यौवन स्वास्थ्य एवम् सुक्राणुओं पर पड़ता है। कई बार इंसान को अल्पवीर्य, क्षीणवीर्य, सही मात्रा में वीर्य का उत्पादन ना होना, संभोग की इच्छा कम होना, बच्चे पैदा करने में कठिनाई का सामना करना, आदि बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तो इन सभी प्रकार की परेशानियों का उपाय आपको वाजीकरण तंत्र में मिलेगा।

निष्कर्ष : इस पूरे लेख का सार यह है की अगर आप स्वस्थ रहना चाहते हैं तो आपको आयुर्वेद के आठों भागों में बताए गए नियमों को अवश्य ही पढ़ना चाहिए। या फिर आप हमारे साथ जुड़े रहें, क्योंकि हम, स्वास्थ्य से जुड़ी सभी प्रकार की जानकारी आप तक पंहुचाते रहते हैं। 

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