कफ दोष के असंतुलित होने के कारण, लक्षण और उपाय

आयुर्वेद में कफ दोष के कुछ गुण बतलाये है, जो की हैं स्निग्ध, चिकना, दृढ़ता, चिपचिपा, ठंडा, स्थिलता, कोमल, भारी आदि। इन गुणों को देखकर आप अपनी प्रकृति को पहचान सकते हैं। और जिस किसी भी व्यक्ति में इन गुणों की बहुलता मिले, तो समझ लेना की उसकी कफ प्रकृति है। इन गुणों में से कुछेक गुण आपको तभी महसूस होंगे जब आपके शरीर में कफ विकृत होगा। 



कफ के मुख्य कार्य 

 जब कफ अपनी सम अवस्था में रहता है तो वह निम्न प्रकार के कार्य करता है। 

  1. यह आपके शरीर का विकास करता है। 

  2. आपके शरीर के सभी जोड़ो को मजबूती प्रदान करता है।  

  3. यह आपके शरीर के सभी अंगों को पोषण प्रदान करता है। 

  4. आपके सम्पूर्ण शरीर की वृद्धि करता है। 

  5. यह आपको बलिष्ठ बनाता है। 

  6. यह आपके शरीर में चिकनाहट बनाये रखता है। 

  7. यह इंसान में सहनशीलता प्रदान करता है। 

  8. यह आपके शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

  9. शरीर के घावों आदि को भरने का मामला भी इसी के अधीन आता है। 

  10. आपके शरीर को हमेशा सुडौल बनाये रखता है, यानी शरीर को आकर्षक रूप प्रदान करता है। 


इंसान के जीवन में कफ का समय एवं स्थान 

कफ आपके शरीर में मुख्यतः नाभि एवं हृदय से ऊपर रहता है। और अगर अंगों के माध्यम से देखें तो यह आपके नाक, कंठ, जिव्हा, छाती, सर, और आपके सन्धिस्थानों में विद्यमान रहता है। 


अगर बात करें मानव की उम्र की तो यह मुख्य रूप से बच्चों में विद्यमान रहता है, और लगभग 16 से 17 वर्ष की आयु तक इंसान के शरीर में इसकी बहुलता रहती है।


दिन और रात में इसके समयकाल की बात करें तो यह सुबह के वक्त लगभग 5 - 6 बजे से लेकर 9 - 10 बजे तक, और रात में यह सांयकाल में 6 बजे से लेकर 9 - 10 बजे तक रहता है।  


ऋतुओं के हिसाब से जाने तो इसके असंतुलित होने वाली ऋतु है, वसंत ऋतु एवं इसके सम अवस्था में रहने की ऋतु है, ग्रीष्म ऋतु।   


कफ के भेद 

कफ दोष के पांच भेद हैं : अवलम्बक, क्लेदक, बोधक, तर्पक एवं श्लेषक। चलिए अब इन पाँचों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं। 


अवलंबक इंसान के शरीर में मुख्य रूप से छाती में विद्यमान रहता है। इसका मुख्य काम है हृदय एवं फेफड़ों को मजबूती प्रदान करना।  


क्लेदक मुख्य रूप से आमाशय में रहता है। इसका मुख्य कार्य है भोजन को गीला करना और उसके पाचन सहायता प्रदान करना। 


बोधक का मूल स्थान, आपकी जिव्हा होती है और इसका मुख्य कार्य होता है, किसी भी चीज के स्वाद का बोध कराना आदि। 


तर्पक का स्थान होता है आपका सिर और इसका मुख्य कार्य है, आपकी ज्ञानेन्द्रियों को पोषण प्रदान करना। 


श्लेषक आपकी हड्डियों के जोड़ों में मौजूद रहता है और साथ ही यह आपके जोड़ों को मजबूती एवं चिकनाई प्रदान करता है। 

कफ वृद्धि के लक्षण 

  1. यह आपकी जठराग्नि को मंद कर देता है। 

  2. आपके शरीर में आलस्य को बढ़ाता है। 

  3. शरीर के लगभग सभी अंगों में भारीपन महसूस होने लगता है। 

  4. आपकी आँखों एवं त्वचा का रंग सफ़ेद हो जाता है। 

  5. बहुत सारी सांस की बीमारियाँ हो जाती हैं। 

  6. खांसी आने लगती है। 

  7. शरीर के अंग ठंडे महसूस होने लगते हैं। 

  8. शरीर में खुजली होने लगती है। 

  9. ज्यादा नींद आने लगती है।  

  10. मुख का स्वाद मधुर रहना। 

  11. फैसला लेने में और उस पर अम्ल करने में देरी करना। 

  12. भूख प्यास कम लगना। 

  13. कम पसीना आना। 

कफ की कमी होने लक्षण 

अगर आपके शरीर में कफ दोष की कमी हो जाए तो भी आपको बहुत सारी परेशानियों या बिमारियों का सामना करना पड़  सकता है, तो आइये जानते हैं उन बीमारियों या परेशानियों के बारे में। शरीर में कफ कमी होने से आपको, नींद आने में परेशानी होने लगती है, ज्यादा प्यास लगती है, शरीर में चिकनाई की कमी हो जाती है यानि की शरीर रुखा - रुखा हो जाता है। इसके अलावा शरीर में कुछ खालीपन या हल्कापन महसूस होता है, शरीर के जोड़ ढीले हो जाते हैं, और साथ ही शरीर में कमजोरी भी महसूस होने लगती है। 


ध्यान दें : जब भी आपके शरीर में कफ की कमी होती है तो उसी क्षण बाकी के दोनों दोषों (वात एवं पित्त) में वृद्धि होने लगती है और शरीर में उनके ही लक्षण दिखाई देने लगते हैं।    

कफ के असंतुलित होने के कारण 

जब किसी व्यक्ति की प्रकृति ही कफ वाली हो तो कफ दोष बहुत ही कम कारणों से विकृत हो जाता है और ठीक इसी प्रकार यह बसंत ऋतु में भी बहुत ही कम कारणों से विकृत हो जाता है। अब जानते हैं इसके और अन्य कारण, जिनसे यह विकृत होता है। 

  1. ज्यादा चिकनाई वाला भोजन करने से। 

  2. अधिक ठंडा पानी पीने से और अन्य ठंडी चीजों के ग्रहण करने से। 

  3. ज्यादा मीठा खाने से। 

  4. दिन के समय सोने से इसमें वृद्धि होती है। 

  5. ज्यादा आलसी बने रहने से। 

  6. व्यायाम न करने से। 

  7. ज्यादा घी एवं दूध का सेवन करने से। 

  8. सब्जी में घीया एवं पेठे (कद्दू) आदि का प्रयोग करना। 

  9. ज्यादा मछली के मांस का सेवन करने से। 

  10. ज्यादा गन्ना, नारियल, आदि का सेवन करने से। यानी के जिसमें अधिक पानी की मात्रा हो उन भोज्य पदार्थों का सेवन करने से। 


कफ दोष को शांत करने के उपाय 

सबसे पहले तो आपको उन सभी चीजों का प्रयोग करना बंद करना पड़ेगा, जिनकी वजह से कफ की वृद्धि या  क्षीणता होती हो। और बाकी के उपाय आपको नीचे बता रहे हैं। 

  1. तीखे या कड़वे रस वाले भोज्य एवं पेय पदार्थों का प्रयोग करें। 

  2. प्रतिदिन व्यायाम करें जैसे दौड़ना, तैराकी, दंड - बैठक आदि।  

  3. कुछ गर्म वस्त्रों का प्रयोग करें। 

  4. हल्के गर्म जल का सेवन भी करें। 

  5. कृपया करके कभी - कभी उपवास भी करें। 

  6. सुबह -सुबह धुप में बैठें। 

  7. आलसपन को छोड़ें और हमेशा चुस्त रहने की कोशिश करें। 

  8. अपनी दिनचर्या को व्यवस्थित रखें। 

  9. गर्म तासीर वाले भोज्य पदार्थों का सेवन करें। 


निष्कर्ष : कफ को उसकी सम अवस्था में ही रखें, जिससे की आपका सम्पूर्ण शरीर निरोगी रहेगा, सुडौल रहेगा, और आप बलवान बने रहेंगे। 


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