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पित्त दोष क्या है?, इसके असंतुलित होने के कारण लक्षण और उपाय

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पित्त दोष मुख्यतः आपके शरीर में उष्णता को बढ़ाता या नियंत्रित करता है। अगर महाभूतों की बात करें तो उनमें अग्नि महाभूत के समान ही इसके कार्य हैं, लेकिन बिल्कुल एक जैसे नहीं हैं।  पित्त दोष क्या है जब यह सम अवस्था में रहता है तो यह निम्न प्रकार से आपके शरीर में कार्य करता है।  यह आपके शरीर में सभी सभी पाचक रसों को नियंत्रित करता है। यह आपके शरीर में सभी प्रकार की अग्नियों का नेतृत्व करता है।  आपके भोजन को पचाने का कार्य भी यही करता है।  आपके शरीर के तापमान को उसकी मूल अवस्था में बनाये रखता है।  इंसान की भूख - प्यास को भी पित्त ही नियंत्रित करता है।  आपकी भोजन में रूचि को बढ़ाता है।  यह आपकी बुद्धि को तेज करता है।  यह आपकी सम्पूर्ण शरीर की खूबसूरती को बढ़ता है।  यह आपकी आँखों को रौशनी को बरक़रार रखता है।  शरीर में मौजूद अतिरिक्त स्निग्धता को सोखता है।  आपके खाये हुए भोजन को रस, रक्त, धातु, मांस, शुक्र एवं मज्जा के रूप में परिवर्तित करता है।    शरीर में पित्त दोष का स्थान इंसान के शरीर में पित्त मुख्य्तः हृदय एवं नाभि के बीच में ...

वात दोष : असंतुलित वात के कारण, लक्षण और उपचार

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तीनो दोषों में से, सबसे ज्यादा बीमारियां वात दोष के बिगड़ने या असंतुलित होने से ही होती हैं। आयुर्वेद में तो यहाँ तक कहा गया है की इंसान के शरीर में जितने भी रोग उत्पन्न होते हैं, उन सबका मूल कारण वात दोष का असंतुलित होना ही है। तो चलिए अब इसके बारे में गहनता से जानते हैं।  वात दोष क्या है? वात दोष बाकी दोनों दोषों से महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि यह आपके, लगभग सम्पूर्ण शरीर को ही नियंत्रित करता है। जैसे आपके शरीर की कर्मेन्द्रियां एवं ज्ञानेंद्रियां, रस, रक्त, धातु आदि को उनके मूल काम में संलग्न रखना।  यह आपके शरीर में सभी गतियों को भी नियंत्रित करता है। जैसे की मल, मूत्र की गति या हृदय की धड़कन, पलक झपकना, छींक आना, डकार आना, पाद आना, सांस लेना या छोड़ना, आपकी चाल की गति, बोलने की गति और शुक्र वेग आदि। यानी आपके शरीर में जो भी अंदरूनी या बाह्य गति होती है, उन सभी को वात ही नियंत्रित करता है। इसके आलावा आपके शरीर के नाड़ी तंत्र को भी यही नियंत्रित करता है।  जैसा की आप जानते हैं की आयुर्वेद में तीन दोष हैं और हम बात कर रहे हैं वात दोष की। तो आपको लगता होगा की बाकी के बचे हुए ...

आयुर्वेद के आठ अंग

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आयुर्वेद को आठ भागों में इसलिए बांटा गया, ताकि मनुष्यों को आयुर्वेद समझने में आसानी हो सके। आयुर्वेद का हर एक अंग अलग - अलग प्रकार के रोगों के उपचार की विशेषता लिए हुए है। आयुर्वेद के आठ अंग इस प्रकार हैं : कायचिकित्सा, बालरोग चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, शालाक्य चिकित्सा, भूतविद्या, अगदतंत्र, रसायन तंत्र और वाजीकरण ।  प्राचीन काल में इन सभी अंगों पर अलग - अलग तंत्र या संहिताएं लिखी गई थी। लेकिन आज उनमें से हमारे पास कुछ ही तंत्र मौजूद हैं। आयुर्वेद के इन आठ अंगों में दुनिया में व्याप्त ज्यादातर बीमारियों की चिकित्सा संभव है। आयुर्वेद में बताई गई जड़ी - बूटियों में कुछ और संशोधन करके हर बीमारी का इलाज़ ढूंढा जा सकता है। अब हम विस्तार से इन आठों अंगों के बारे में चर्चा करेंगे। कायचिकित्सा अगर देखा जाए तो सभी अंगों में सबसे महत्वपूर्ण अंग कायचिकित्सा ही है क्योंकि इसमें मानव शरीर में होने वाली ज्यादातर बिमारियों की चिकित्सा का वर्णन किया गया है। उदाहरण के लिए कुछ बीमारियां इस प्रकार हैं : बुखार, जुकाम, खाँसी, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, कैंसर, मधुमेह, उल्टी - दस्त, जोड़ों का दर्द, पेट दर्द, त्वचा...

आयुर्वेद क्या है? इसका इतिहास, विशेषताएं एवं महत्त्व

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आयुर्वेद इस दुनिया का सबसे प्राचीनतम चिकित्सा एवम् स्वास्थ्य विज्ञान है। अगर इसके शाब्दिक अर्थ (आयुः + वेद) की बात की जाए तो इसमें आयु का मतलब है जीवन और वेद का मतलब है ज्ञान। यानी की जो शास्त्र हमें जीवन जीने के लिए बेहतरीन और उचित ज्ञान प्रदान करता है उसे ही आयुर्वेद कहते हैं। जब शरीर, इंद्रियां, आत्मा एवम् मन का संयोग होता है तो वही जीवन या आयु कहलाता है, और जो शास्त्र हितायु, अहितायु, सुखायु एवम् दुखायु, इन चार प्रकार की आयु का वर्णन करे वही आयुर्वेद शास्त्र कहलाता है। आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ बनाए रखना और रोगी व्यक्ति को रोगमुक्त करना है। इस पृथ्वी पर मौजूद लगभग हर मनुष्य यही चाहता है की उसके पास सुख, समृद्धि, धन-दौलत, ऐश्वर्य आदि सब कुछ हो, लेकिन यह सब पाने के लिए इंसान का स्वस्थ होना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि जब इंसान स्वस्थ होगा तभी तो वह ये सब पाने के लिए मेहनत कर सकता है। तो अब यहां आपको आयुर्वेद की आवश्यकता पड़ेगी क्योंकि स्वस्थ रहने के लिए जो कुछ भी आवश्यक जानकारी आपको चाहिए वो बड़े ही बेहतरीन ढंग से से हमारे ऋषि मुनियों एवम् कुशल वैद्यों द्वा...