आयुर्वेद क्या है? इसका इतिहास, विशेषताएं एवं महत्त्व

आयुर्वेद इस दुनिया का सबसे प्राचीनतम चिकित्सा एवम् स्वास्थ्य विज्ञान है। अगर इसके शाब्दिक अर्थ (आयुः + वेद) की बात की जाए तो इसमें आयु का मतलब है जीवन और वेद का मतलब है ज्ञान। यानी की जो शास्त्र हमें जीवन जीने के लिए बेहतरीन और उचित ज्ञान प्रदान करता है उसे ही आयुर्वेद कहते हैं।


प्राचीन ग्रंथ

जब शरीर, इंद्रियां, आत्मा एवम् मन का संयोग होता है तो वही जीवन या आयु कहलाता है, और जो शास्त्र हितायु, अहितायु, सुखायु एवम् दुखायु, इन चार प्रकार की आयु का वर्णन करे वही आयुर्वेद शास्त्र कहलाता है।

आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति को स्वस्थ बनाए रखना और रोगी व्यक्ति को रोगमुक्त करना है।


इस पृथ्वी पर मौजूद लगभग हर मनुष्य यही चाहता है की उसके पास सुख, समृद्धि, धन-दौलत, ऐश्वर्य आदि सब कुछ हो, लेकिन यह सब पाने के लिए इंसान का स्वस्थ होना बहुत जरूरी होता है। क्योंकि जब इंसान स्वस्थ होगा तभी तो वह ये सब पाने के लिए मेहनत कर सकता है। तो अब यहां आपको आयुर्वेद की आवश्यकता पड़ेगी क्योंकि स्वस्थ रहने के लिए जो कुछ भी आवश्यक जानकारी आपको चाहिए वो बड़े ही बेहतरीन ढंग से से हमारे ऋषि मुनियों एवम् कुशल वैद्यों द्वारा आयुर्वेद नामक शास्त्र में संकलित की हुई है।


ध्यान दें: आयुर्वेद में न केवल इंसानों की चिकित्सा का प्रावधान है बल्कि इसमें पशु - पक्षियों की चिकित्सा का प्रावधान है। इतना ही नहीं आयुर्वेद में इनके लिए अलग से संहिताएं भी लिखी गई हैं जैसे की गजायुर्वेद, अश्वायुर्वेद आदि।


आयुर्वेद का इतिहास एवं उत्पत्ति 


आयुर्वेद का इतिहास बड़ा ही रोचक एवम् दयनीय है। आयुर्वेद का सबसे पहला उपदेश भगवान ब्रह्मा जी ने दिया था। 


आयुर्वेद, अथर्वेद का उपवेद है। अथर्वेद में चिकित्सा सम्बन्धी बहुत सारे श्लोक मिलते हैं, और जोकि, आयुर्वेद में बतलाये गए श्लोकों से मेल खाते हैं, इसी वजह से आयुर्वेद को अथर्वेद का उपवेद कहा जाता है। 


आयुर्वेदीय औषधियों का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है, लेकिन अथर्वेद जितना नहीं मिलता। इतना ही नहीं महाभारत जैसे महाकाव्य में भी आयुर्वेदिक चिकित्सा का वर्णन मिलता है। अब इन्ही बातों से आप अंदाजा लगा सकते हैं की आयुर्वेद कितना प्राचीन है। 


आयुर्वेद की प्रमुख संहिता चरक संहिता के अनुसार आयुर्वेदावतरण क्रमशः इस प्रकार है : ब्रह्मा, दक्ष प्रजापति, अश्विनी कुमारों, इंद्र, भारद्वाज, आत्रेय पुनर्वसु, फिर आत्रेय पुनर्वसु ने इनके शिष्य अग्निवेश, भेल, जतूकर्ण, पराशर एवम् हारित को आयुर्वेद का ज्ञान प्रदान किया। फिर इन शिष्यों ने अपने - अपने नाम से ग्रंथ लिखे। 


वर्तमान में आयुर्वेद के आठ भाग हैं। इसे आठ भागों में विभाजित करने का मुख्य उद्देश्य यह था की यह मनुष्यों को आसानी से समझ आ जाए और आसानी से पढ़ा जा सके। आयुर्वेद के आठ भाग इस प्रकार हैं : कायचिकित्सा, श्ल्यतंत्र, शालाक्य तंत्र, कौमारभृत्य, अगद तंत्र, भूतविद्या, रसायन तंत्र एवम् वाजीकरण। इन सभी भागों पर वैद्यों द्वारा अलग - अलग ग्रंथ या तंत्र लिखे थे।


जैसे - जैसे समय बीतता गया, वैसे - वैसे बाहरी आक्रमणकारियों द्वारा भारत देश पर हमले हुए और उन हमलों में आक्रमणकारियों द्वारा बहुत सारे आयुर्वेदीय ग्रंथ और अन्य महत्वपूर्ण ग्रंथ नष्ट कर दिए गए। 


आयुर्वेदिक संहिताओं में बताया जाता है की ब्रह्मा जी एवम् दक्ष प्रजापति द्वारा आयुर्वेद का सबसे बड़ा एवं महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा गया था जिसका नाम था ब्रह्मसंहिता। लेकिन दुर्भाग्यवश आज यह संहिता हमारे पास मौजूद नहीं है। इन सबका कारण भारत पर हुए बाहरी आक्रमण हैं।


आज हमारे पास मुख्य तौर पर कुछेक संहिताएँ ही मौजूद हैं : चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, कश्यप संहिता, अष्टांगहृदयम आदि। वैसे तो इनके अलावा और भी आयुर्वेदिक ग्रंथ हमारे पास मौजूद हैं, और आज के कुशल आयुर्वेदिक वैद्य एवम् लेखक आयुर्वेद को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं।  


इसके इतिहास को जानने से भी जरुरी यह है की आज आप

आयुर्वेद की विशेषताएं

अगर विशेषताओं की बात करें तो सम्पूर्ण आयुर्वेद ही विशेष है। लेकिन फिर भी हम इसकी कुछ विशेषताओं की चर्चा करेंगे ताकि आप सबको पता चल सके की आयुर्वेद क्या है, और यह किस प्रकार आपके जीवन को बेहतर बना सकता है।


  1. आयुर्वेद सबसे सस्ती चिकित्सा पद्धति है।

  2. अगर आप आयुर्वेद के बारे में थोड़ी बहोत जानकारी भी रखते हैं तो आप कुछ बीमारियों का इलाज अपने घर में ही कर सकते हैं।

  3. आयुर्वेदिक चिकित्सक को आपकी बीमारी जानने के लिए किसी उपकरण या किसी प्रकार की चीर - फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती। आयुर्वेदिक चिकित्सक केवल आपकी नाड़ी, मल, मूत्र, जीभ, आंख एवम् आपकी शारीरिक प्रकृति जानकर ही आपकी बीमारी का पता लगा लेते हैं।

  4. आयुर्वेदिक औषधियों का आपके शरीर पर कोई साइड इफेक्ट नहीं होता, अपितु ये औषधियां आपके शरीर को बल प्रदान करती हैं।

  5. आयुर्वेद में बीमारी ठीक करने के लिए औषधियों से ज्यादा आपके खान - पान एवम् आपकी दिनचर्या पर ध्यान दिया जाता है।

  6. आयुर्वेद सभी बीमारियों को मनोदैहिक दृष्टि से देखकर उपचार करता है।

  7. आयुर्वेद इस पृथ्वी पर हर जगह मौजूद है।

  8. आयुर्वेद में हर एक व्यक्ति का उपचार धातु एवम् दोषों (वात, पित्त, कफ) के आधार पर किया जाता है।

  9. आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में बीमारी के मूल कारण को नष्ट करने पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, ताकि बीमारी दोबारा ना हो।

  10. आयुर्वेद में लगभग ज्यादातर बिमारियों का इलाज संभव है।


आयुर्वेद का महत्व 

आयुर्वेद का महत्व दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है और अब तो यह पूरी दुनिया तक फैल चुका है। इसके महत्व का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं की भारत में एवम् इसके पड़ोसी देशों की लगभग 80 फीसदी से ज्यादा जनसंख्या आयुर्वेद को जानती है और उसका प्रयोग अपने दैनिक जीवन में करती है।


भारत के लगभग हर घर में आयुर्वेद में बतलाए गए नियमों का जिक्र अवश्य होता ही है। इन नियमों को हम आम बोलचाल में देशी नुस्खे कहते हैं।


अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को तंदुरुस्त देखना चाहते हैं तो हमें आयुर्वेद में बताए गए खान - पान एवम् दिनचर्या को अपनाना होगा।


निष्कर्ष : आयुर्वेद एक बेहतरीन चिकित्सा एवम् स्वास्थ्य पद्धति  है। अगर आप निरोगी बने रहना चाहते हैं तो आपको अवश्य ही आयुर्वेद अपनाना चाहिए। कुछेक लोग आज भी आयुर्वेद की औषधियों को अपनाने में थोड़ा संकोच करते है, लेकिन मैं, आपको ये बताना चाहता हूँ की जब से यह दुनिया बनी है, तब से आयुर्वेद की औषधियां कारगर हैं और जब तक ये दुनिया नष्ट नहीं हो जाती, तब तक ये आयुर्वेदीय औषधियां एवं आयुर्वेद में बतलाये गए नियम कारगर रहेंगें। 


आयुर्वेद प्रकृति का ही एक अभिन्न अंग है। इसमें वर्णित सभी औषधियाँ प्रकृति से ही प्राप्त होती हैं, और प्रकृति के हिस्से यानी “इंसानों या अन्य जीवित प्राणियों” के रोगों के उपचार में अपनी भूमिका निभाती हैं। और अब इन्हीं बातों ये भी सिद्ध होता है की आयुर्वेद शाश्वत है। तो अब आप बेफिक्र होकर आयुर्वेद की औषधियों एवं इसमें बतलाये गए नियमों का पालन करें। 

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